फोरलेन पर खिसकते पहाड़ों को मजबूत करेगा एनएचएआई

शिमला। फोरलेन पर भविष्य में आपदा का असर रोकने को एनएचएआई ने व्यापक स्तर पर काम छेड़ दिया है। पहाड़ों से खिसकती चट्टानों को बांधने में एनएचएआई ने एक बड़ा समझौता एसजेवीएन के साथ किया है। अब सुरंग बनाने समेत पहाड़ खोदकर नेशनल हाई-वे निकालने के सभी प्रोजेक्ट तालमेल से पूरे होंगे। गौरतलब है कि बरसात के दौरान प्रदेश में भयानक आपदा पेश आई थी और इस वजह से कीरतपुर-मनाली नेशनल हाई-वे को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था। मंडी और कुल्लू के बीच के कई हिस्से बाढ़ से या तबाह हो गए थे, जबकि कुछ जगहों पर भारी-भरकम चट्टानों के खिसकने से एनएच ठप रहा। आलम यह है कि मंडी में एनएच को दोबारा से जोडऩे के लिए छह और सात मील में सुंरग बनाने की जरूरत पड़ गई है। केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद यहां करीब दो किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है, जबकि प्रदेश के दूसरे हिस्सों में बनाए जा रहे फोरलेन पर भी आगामी बरसात के खतरे को देखते हुए एनएचएआई ने अभी से कदम उठाने शुरू कर दिए है। न सिर्फ हिमाचल बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रदेश के दरकते पहाड़ों को बचाने के लिए एनएचएआई आपदा के बाद से लगातार मंथन कर रही है। इसी क्रम में अब एसजेवीएन के साथ समझौता हुआ है।

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दरअसल, एसजेवीएन कई सालों से हिमालयी क्षेत्रों में ही काम कर रही है और यही वजह है, जो एनएचएआई अब संयुक्त रूप से एसजेवीएन के साथ मिलकर परियोजनाओं को गति देगी। कीरतपुर-मनाली एनएच समेत मंडी में प्रस्तावित सुरंग और शिमला-मटौर एनएच में एनएचएआई सोची-समझी रणनीति के तहत काम करेगी। एनएचएआई और एसजेवीएन के बीच 22 जनवरी को एनएचएआई मुख्यालय द्वारका नई दिल्ली में यह एमओयू साइन हुआ है। एनएचएआई की ओर से एमओयू पर सीजीएम (टेक) मरेंद्र कुमार, एनएचएआई के चेयरमैन संतोष कुमार यादव, आलोक दीपांकर सदस्य (टेक), आशीष कुमार जैन जीएम एनएचएआई व डीजीएम विश्वास शर्मा मौजूद रहे है। एनएचएआई हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रीय अधिकारी अब्दुल बासित ने बताया कि जुलाई और अगस्त की आपदा के तुरंत बाद स्थायी समाधान खोजने की आवश्यकता महसूस की गई थी और एसजेवीएन का हिमालयी क्षेत्र में काम करना सबसे उपयुक्त था। यह समझौता ज्ञापन एनएचएआई के आगामी डीपीआर और ढलान संरक्षण उपायों, सुरंग परियोजनाओं के लिए समाधान खोजने में मदद करेगा। आपदा में राष्ट्रीय राजमार्गों पर कई स्थानों पर भूस्खलन और ढलान सुरक्षा को नुकसान हुआ है। हिमाचल में नाजुक हिमालय के साथ काम करने और उनके ज्ञान का उपयोग करने में एसजेवीएन की विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए एनएचएआई को मदद लेने की आवश्यकता महसूस की गई।

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