जिंदा रहने के लिए चट्टानों से टपकता पानी चाटा, ‘मुरी’ खाई: सुरंग से बचाया गया झारखंड का मजदूर

आपके द्वारा प्रदान की गई कहानी में उत्तराखंड में एक ध्वस्त सुरंग के अंदर फंसे अनिल बेदिया और अन्य श्रमिकों के कष्टदायक जीवित रहने और अंततः बचाव का विवरण दिया गया है। बचाए जाने से पहले इन व्यक्तियों को 17 दिनों तक अकल्पनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे ‘मुरी’ (फूला हुआ चावल) खाकर और चट्टानों से रिसने वाला पानी पीकर जीवित रहे।

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ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय मार्ग पर सिल्क्यारा सुरंग ढहने से अंदर काम कर रहे कर्मचारी अलग-थलग पड़ गए। झारखंड के 22 वर्षीय अनिल बेदिया ने शुरुआती निराशा और मृत्यु के निकट के अनुभवों का वर्णन किया, जो उन्होंने सुरंग के भीतर मिलने वाली किसी भी जीविका पर निर्भर होकर सहे थे।

पहले दस दिनों के दौरान, वे चट्टानों से टपकते पानी पर जीवित रहे, लेकिन जब आपदा के लगभग 70 घंटे बाद अधिकारियों ने संचार स्थापित किया तो आशा जग गई। इसके बाद, उनके अस्तित्व का समर्थन करने के लिए फल, गर्म भोजन और पानी की बोतलों सहित आपूर्ति नियमित रूप से भेजी गई।अनिल बेदिया के परिवार और अन्य प्रभावित परिवारों को इस अवधि के दौरान संकट का सामना करना पड़ा, वे पड़ोसियों के समर्थन पर निर्भर थे क्योंकि वे फंसे हुए श्रमिकों की खबर का उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे।

बचाव अभियान 12 नवंबर को शुरू हुआ जब भूस्खलन के कारण सुरंग का एक हिस्सा ढह गया, जिससे श्रमिकों का बाहर निकलना बंद हो गया। अंततः, 17 चुनौतीपूर्ण दिनों के बाद, अनिल बेदिया और उनके साथियों सहित फंसे हुए श्रमिकों को बचा लिया गया, जिससे उनके परिवारों और समुदायों को भारी राहत मिली।

यह कहानी अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मानवीय भावना के लचीलेपन और दृढ़ता को रेखांकित करती है और कठिन समय के दौरान सामुदायिक समर्थन की ताकत को प्रदर्शित करती है।

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