काशी की देव दीपावली को रोशन करेंगे गोरक्षनगरी के हवन दीप

लखनऊ: विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी में मनाए जाने वाली देव दीपावली गुरु गोरक्षनाथ की नगरी (गोरखपुर) के दीयों से रोशन होगी। देशी गायों के गोबर से बने हवन दीप यहां की भूमि को जगमग करेंगे।

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दीपावली के बाद प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र काशी में “देव दीपावली” आयोजन होता है। इस खास अवसर पर इस बार कुछ रोशनी और ढेर सारी खुशबू मुख्यमंत्री योगी के गृह जनपद गोरखपुर के हवन दीप की भी होगी। ये “हवन दीप” देशी गाय के गोबर से बन रहे हैं। सरकार ने इसके लिए सिद्धि विनायक की संगीता पांडेय को यह आर्डर उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग के तहत संचालित उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट आफ डिजाइन एंड रिसर्च (यूपीआइडीआर) की ओर से दिया गया है।

अपनी हुनर के दाम पर 1500 रुपये से कारोबार शुरू कर करोड़ों का टर्नओवर करने वाली महिला उद्यमी संगीता पांडेय ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिद्धि विनायक वीमेन स्ट्रेंथ सोसाइटी के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों के जरिये उन्हें काम दे रही हैं। देशी गाय के गोबर से ही क्यों? इस सवाल पर संगीता का कहना है कि विदेशी नस्ल की गायों की गोबर की तुलना में देशी का गोबर टाइट होने की वजह से इसे शेप देना आसान होता है।

इस समय गोरखपुर से सटे गुलरिहा गांव की करीब 50 महिलाएं इस हवन दीप को अपने हुनर मंद हाथों से आकर देने में जुटीं हैं।संगीता पांडेय बताती हैं कि एक हवन दीप 28 रुपये में दिया जा रहा है। महिलाओं को इसके साथ ही अन्य कार्य भी मिलते हैं। उन्होंने बताया कि हवन दीप प्रदूषण मुक्त होता है। जलने के बाद राख को छोड़ इससे कोई अपशिष्ट बचता ही नहीं। इसे बनाने के लिए पहले देशी गाय का गोबर एकत्र कर उसमें अगरबत्ती को सुगंधित करने वाला इसेंस डाला जाता है। फिर गोबर को खूब सान कर उसे कफ सिरप के आकार के ऊपर से कटी शीशी के चारो लपेटा जाता है।

सूखने पर शीशी को गोबर से अलग कर देते हैं। फिर इसमें हवन में प्रयोग की जाने वाली सारी सामग्री (सुपारी, जौ, तिल, देशी घी, गुग्गुल आदि) डालकर लोहबान से लॉक कर दिया जाता है। ऊपर से आसानी से जलने के लिए कुछ कपूर रख दिया जाता है। ये सारी चीजें रोशनी और खुशबू देने के बाद राख ने तब्दील हो जाती हैं।

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