रांची: झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त रहने से जुड़े मामले पर मंगलवार को झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र और जस्टिस आनंद सेन की बेंच में सुनवाई हुई। विधानसभा की ओर से अदालत में शपथ पत्र दायर कर बताया गया है कि नेता प्रतिपक्ष और किसी सदस्य के दल-बदल के मामले में निर्णय का अधिकार स्पीकर और उनके ट्रिब्यूनल का है। इस मामले में हाईकोर्ट की ओर से उन्हें निर्देशित नहीं किया जा सकता है।
विधानसभा और राज्य सरकार की ओर से बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 212 (1) (2) के अनुसार विधानसभा स्पीकर का स्वतंत्र क्षेत्राधिकार है और उनके ट्रिब्यूनल की कार्यवाही में अदालत की ओर से किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। सिब्बल ने झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के मसले का जिक्र करते हुए कहा कि विपक्षी पार्टी भाजपा की ओर से इस पद के लिए जिस बाबूलाल मरांडी का नाम दिया गया है, वह न तो भाजपा की ओर से विधायक का चुनाव ल़ड़े और न ही इस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधानसभा पहुंचे।
सिब्बल ने कहा कि बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा की ओर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बाद में झारखंड विकास मोर्चा के भाजपा में विलय की बात कही गई, लेकिन यह मर्जर विवादास्पद है। इसे लेकर विधानसभा स्पीकर के ट्रिब्यूनल में मामला चल रहा है और उनका इसपर कोई निर्णय नहीं आया है। यह उनका क्षेत्राधिकार है, जिसमें हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। सिब्बल ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के लिए भाजपा की ओर से विधानसभा स्पीकर के पास ऐसे व्यक्ति का नाम दिया जाना चाहिए, जो उसके उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर विधायक बना हो।
अदालत में भाजपा की ओर से उपस्थित अधिवक्ता कुमार हर्ष ने इस पर विरोध जताया। उन्होंने कहा कि भाजपा विधानसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी है और उसकी ओर से नेता प्रतिपक्ष के लिए पार्टी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का नाम दिया जा चुका है। इसके बावजूद उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि नेता प्रतिपक्ष का यह मामला हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान उठा है। यह याचिका हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन की ओर से दायर की गई है, जिसमें बताया गया है कि लोकायुक्त, सूचना आयोग, महिला आयोग सहित करीब एक दर्जन संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्षों और सदस्यों के पद रिक्त रहने के कारण राज्य में महत्वपूर्ण कामकाज प्रभावित हो रहे हैं।
इनमें से कई पदों पर नियुक्ति न होने की एक बड़ी वजह राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त होना है। इन पदों पर नियुक्ति के लिए निर्णय लेने वाली जो चयन समितियां होती है, उसमें नेता प्रतिपक्ष भी सदस्य होते हैं। उनकी गैर मौजूदगी के कारण कई चयन समितियां डिफंक्ड हैं। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से विभिन्न आयोग में रिक्त पदों की नियुक्ति के बिंदु पर अदालत को बताया गया कि जिन पदों पर नियुक्ति नेता प्रतिपक्ष के बिना हो सकती है, उनके लिए बैठकें की जा रही हैं। नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है और इसे शीघ्र पूरा कर लिया जाएगा। अदालत ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 30 अगस्त की तारीख मुकर्रर की है।