उत्तरप्रदेश : राजातालाब तहसील के दाऊदपुर गांव में टाउनशिप योजना के लिए नोटिफाइड जमीन बलिया के एक व्यक्ति के नाम करने का मामला आया है. एसडीएम शैलेंद्र कुमार मिश्र ने 8 सितम्बर को सवा दो बीघे भूमि पर नाम चढ़ाने का आदेश जारी किया है. स्थानीय लोगों ने विरोध जताया तो एसडीएम ने आनन-फानन में कानूनगो व लेखपाल के खिलाफ नोटिस जारी कर दिया है. उधर, डीएम एस. राजलिंगम का कहना है कि प्रकरण की जांच कराई जाएगी.प्रदेश सरकार ने 2009 में हाईटेक टाउनशिप पॉलिसी के तहत पीपीपी मॉडल पर ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट लॉन्च किया था. कम से कम 1000 एकड़ जमीन में प्रोजेक्ट शुरू करना था. इसके तहत वाराणसी में यूनिटेक ने 00 एकड़ जमीन पर प्रोजेक्ट का प्रस्ताव सरकार को दिया था. कम्पनी ने यहां 252 एकड़ जमीन रजिस्ट्री करायी थी. ये जमीनें कई हिस्सों में है. 2018 में नोएडा व गाजियाबाद में यूनिटेक की ग्रुप हाउसिंग का मामला सुप्रीमकोर्ट में जाने के बाद बनारस की परियोजना भी ठप हो गई.
इसके बाद से इस जमीन पर भूमाफियाओं की नजर गड़ी थी. पिछले दिनों मुख्य सचिव ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए वाराणसी, गाजियाबाद आदि शहरों में जहां यूनिटेक की जमीनें हैं, उनकी नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया. इसी बीच तहसील प्रशासन ने नोटिफाइड जमीन को बगैर उच्चाधिकारियों के आदेश या संज्ञान में लाये बलिया निवासी कमलदेव सिंह यादव के पक्ष में दाउदपुर की आराजी संख्या 81 का .535 हेक्टेयर जमीन पर नाम चढ़ाने का आदेश दिया है. यूनिटेक भगाओ जमीन वापस लाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष दिनेश नारायण सिंह को भनक लगते ही उन्होंने मंडलायुक्त को अवगत कराया. समिति ने एसडीएम न्यायालय में आपत्ति भी दाखिल की है.
पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए किया खेल यूनिटेक द्वारा क्रय जमीन का बैनामा कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरी अजय मुखर्जी और किसानों के बीच हुआ था. कंपनी ने 2009 में अजय मुखर्जी को निकाल दिया. 20 जनवरी 20 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यदुवीर सिंह मलिक की अध्यक्षता में नया बोर्ड बनाया गया. इसमें अजय का नाम नहीं है. परंतु उसने धोखाधड़ी कर 31 मई 2022 को उप निबंधक गाजियाबाद सदर-द्वितीय के यहां से फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बलिया निवासी कमलदेव सिंह यादव के नाम से पंजीकृत कर लिया. इसकी जानकारी पर वाराणसी की संघर्ष समिति की ओर से रोहनिया थाने में अजय मुखर्जी और कमलदेव के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज कराया गया. गिरफ्तारी से बचने के लिए 25 जुलाई 2022 को अजय मुखर्जी और कमलदेव ने अटार्नी निरस्त करवा दी. उसी दिन दूसरे निबंधन कार्यालय से अपना पता बदलकर दूसरी पावर ऑफ अटॉर्नी पंजीकृत करा ली. इसी पावर ऑफ अटॉर्नी को आधार बनाकर यूनिटेक की जमीनों को कब्जा करने का प्रयास शुरू हो गया.